हमारे दर्द की शायद नही बनी कोई दवा, ना मिलेगा कोई इलाज,
ना घबराईए, ऐसी बीमारी का नही है कोई बहुत बड़ा राज़,
बस ये समझ लीजिए, हमने जिसे दिया अपनी ज़िंदगी का तख्तो ताज़,
उसी को ना जाने कैंसे कर बैठे हम नाराज़|
अब तो जीवन मे ना रही कोई उम्मीद, ना है कोई अरमान,
ये दुनिया लगती है जैंसे, हम हो इसमे कोई बिन बुलाए मेहमान,
आज इस कदर पिला दे ऐ साकी.... के दुनिया मे या तो शराब ना रहे या हमारा कोई नामो-निशान,
बहुत हुए हम ये रोज़-रोज़ की मौत से परेशान|
आज इस कदर पिला दे साकी.... के कल की रहे ना कोई उम्मीद ना कोई अरमान,
बहुत हुए हम ये रोज़-रोज़ की मौत से परेशान|
This blog will capture anything that happens 'to me', 'around me' and 'is interesting enough to be written by me'. Mahaveer Bisht
Sunday, November 14, 2010
Friday, November 12, 2010
ek naseehat!
बे-इंतेहाँ इंतज़ार इत्तफ़ाक़ नही होता......
ये इश्क की राह है मेरे दोस्त, इसमे मज़ाक नही होता|
खूब कर लो जान-पहचान या दोस्ती, गर ऐसे कभी प्यार नही होता,
इस राह मे दर्द ही दर्द है मेरे दोस्त करार नही होता|
बे-इंतेहाँ इंतज़ार इत्तफ़ाक़ नही होता......
ये इश्क की राह है, इसमे मज़ाक नही होता|
Buka
ये इश्क की राह है मेरे दोस्त, इसमे मज़ाक नही होता|
खूब कर लो जान-पहचान या दोस्ती, गर ऐसे कभी प्यार नही होता,
इस राह मे दर्द ही दर्द है मेरे दोस्त करार नही होता|
बे-इंतेहाँ इंतज़ार इत्तफ़ाक़ नही होता......
ये इश्क की राह है, इसमे मज़ाक नही होता|
Buka
Subscribe to:
Posts (Atom)